जालौर किला: विरासत और वीरता की एक कालातीत कहानी

जालौर किला: राजस्थान की विरासत का राजसी प्रहरी

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सोनलगढ़, कनकाचल, सुवर्णगिरि आदि के नाम से प्रसिद्ध इस दुर्ग का निर्माण सुकड़ी नदी के किनारे गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने करवाया था ।  आधुनिक इतिहासकार मानते है कि इस किले का निर्माण परमार राजपूतों ने आरम्भ करवाया था किन्तु सही बात यह है की इसका निर्माण परिहारो के काल स आरम्भ हो गया था ।


जालौर का दुर्ग दिल्ली से गुजरात जाने वाले मार्ग पर स्थित है ।  इस कारण इसे उन मुस्लिम आक्रांताओ का अनेक बार सामना करना पड़ा जिन्होंने पश्चिम से आकर गुजरात पर चढ़ाई की । जब अल्लाउद्दीन खिलजी सोमनाथ पर आक्रमण करने के लिए दिल्ली से गुजरात जाने लगा तो  जालौर से राजा कान्हड़दे ने खिलजी  की सेना को अपने राज्य से होकर जाने देने से मना कर दिया । उस समय तो खिलजी की सेना ने अपना मार्ग बदल लिया किन्तु गुजरात विजय के बबाद उसने जालौर पर आक्रमण किया । कहते है लगभग 13 वर्ष तक घेराबंदी चली जिसे खिलजी तोड़ नहीं सका. बाद में 1311 ई. में बीक नामक दहिया राजपूत की गद्दारी से किले का पतन हुआ ।


कान्हड़दे के साथ ही जालौर से अतुल पराक्रमी और यशस्वी सोनगरा चौहानो का वर्चस्व समाप्त हो गया ।  जब जोधपुर की गद्दी के लिए भीम सिंह और मानसिंह के बबीच उत्तराधिकार का संघर्ष चला तब अपने संकट काल में महाराजा मानसिंह ने इसी दुर्ग में आश्रय लिया था तथा अपने बड़े भाई व जोधपुर के तत्कालीन महाराजा भीमसिंह के इस आदेश का की वे जालौर का दुर्ग खाली कर जोधपुर आ जाएं, उन्होंने जो वीरोचित उत्तर दिया वह लोक में आज भी प्रेरक वचन के रूप में याद किया जाता है -


आभ फटै, घर उल्टै, कटै बगतरा कोर ।
सीस पड़ै, धड़ तड़फड़ै, ज्यादा छूटै जालौर ॥


इस समय यहां राजा मानसिंह का महल, दो बावड़ियाँ, एक शिव मंदिर , देवी जोगमाया का मंदिर, वीरमदेव की चौकी, संत मल्लिक शाह की दरगाह तथा तीन जैन मंदिर स्थित है ।  जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ का मंदिर सबसे बड़ा एवं भव्य है । चौमुखा जैन मंदिर से मानसिंह के महलो की और जाते समय ठीक एक छोटे से चबूतरे पर परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ खड़ा है । 

 

स्वतंत्रता आंदोलन के समाया मथुरादास माथुर, गणेशीलाल व्यास, फतहराज जोशी एवं तुलसीदास राठी आदि नेताओ को इस दुर्गा में नजरबंद किरा गया था । किले के भीतर तोपखाना मस्जिद , जो पूर्व में परमार शासक भोजा द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी, बहुत आकर्षक है ।

 

Source: - राजस्थान का इतिहास, कला एवं संस्कृति: एक सर्वेक्षण 

 

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