Purushottam Maas or Adhik Maas: Everything You Should Know
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास परिचय (Introduction to Purushottam Maas or Adhik Maas):
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास जुलाई के इस महीने में 18 जुलाई 2023, मंगलवार के दिन से ही अधिक मास या पुरुषोत्तम मास की शुरुआत होने जा रही हैं। इस मास को अधिक मास भी कहा जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 12 महीने ना होकर एक महीना अधिक होता है अर्थात् इस साल हिन्दू पंचांग में 13 महीने होंगे। हिन्दू पंचांग के अनुसार ही सूर्य का क्रम भी हर महीने 12 ही राशियों में चलता है परन्तु अधिक मास में सूर्य का संक्रमण प्रभाव किसी भी राशि पर नही होता है।
अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि इसके स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु है जिनका 24वा नाम पुरुषोत्तम हैं । मान्यताओ के अनुसार इस मास में किए गए धार्मिक कार्यो, व्रत, और पूजा अर्चना का दूसरे महीनों की अपेक्षा अधिक फल प्राप्ति योग्य होता है तथा इस महीने में किए गए दान धर्म से मोक्ष की गति प्राप्त होने की महत्त्वता मानी जाती है।
अधिक मास या पुरुषोत्तम मास क्या होता है और पुरुषोत्तम मास कितने सालों बाद आता है ? (What is Adhik Maas or Purushottam Maas and After How Many Years Purushottam Maas Comes?)
अंग्रेजी पंचांग के अनुससर एक वर्ष मे 12 महीने होते हैं, लेकिन हिंदू पंचांग मे हर 3 साल में एक बार गणनाओं के अनुसार एक माह अतिरिक्त आता है। इस अतिरिक्त महिने को ही अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। पूजा पाठ, व्रत, साधना का महत्व अधिक मास में बढ़ जाता है। हिंदू पंचांग सूर्य और चंद्रमा की चाल के आधार पर की गयी गणनाओं पर आधारित होता है।
चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष के मध्य अंतर को बराबर करने हेतु अधिक मास लगता है। चंद्र साल का अतिरिक्त भाग अधिक मास होता है और यह हर 32 माह 16 दिन 8 घंटे के अंतर से आता है। हिन्दू ग्रंथों के अनुसार हर 28 महीने के बाद में और 36 महीने से पहले एक अधिक मास जरूर आता है।
वर्ष 2023 में पुरुषोत्तम मास या अधिक मास कब है ? (When is Purushottam Maas or Adhik Maas in the Year 2023?)
जैसा कि हमने आपको बताया है कि अधिक मास यानी कि पुरुषोत्तम मास हर 3 साल के बाद अवश्य आता है जो कि इस वर्ष सुयोग से सावन के महीने में 18 जुलाई मंगलवार से शुरू होकर 16 अगस्त बुधवार को समाप्त होने वाला है। सावन के महीने के साथ अधिक मास का यह सुयोग 19 साल बाद आया है। शास्त्रों के अनुसार सावन के साथ अधिक मास आने का बहुत ही विशेष महत्व होता हैं।
अधिक मास का नाम पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा ? (How Did Adhik Maas Get Its Name as Purushottam Maas?)
चूंकि अधिक मास मे किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं होता है और इसे मलमास भी माना जाता है इस वजह से अधिक मास को जब कोई भी देवी-देवता नहीं अपना रहा था तो भगवान श्री हरी विष्णु ने सभी देवी-देवताओं के निवेदन पर अधिक मास के अपनाया। इसके फलस्वरूप अधिक मास को पुरुषोत्तम मास नाम दिया गया जो की श्री हरी विष्णु के सहस्त्र नामों मे से उनका एक नाम है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अधिक मास मे जब भगवान विष्णु की आराधना की जाती है तो इसका फल दस गुना अधिक मिलता है।
पुरूषोत्तम मास या अधिक मास में किसकी पूजा की जानी चाहिए ? (Who Should be Worshiped in Purushottam Maas or Adhik Maas?)
पुरुषोत्तम मास में भगवान श्रीहरि (विष्णु भगवान) की पूजा की जाती है क्योंकि इसके स्वामी स्वयं भगवान श्रीहरि हैं। पुरुषोत्तम मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है और मान्यताओ के अनुसार श्री विष्णु मोक्ष का स्रोत, पापों के मुक्तिदाता, ज्ञान के स्रोत हैं। इसीलिए इस माह भगवान विष्णु की पूजा - आराधना और भागवत कथा सुनना भी बेहद पुण्यदायी माना जाता है।
चूंकि इस वर्ष अधिक मास श्रावण मे महीने मे आया है तो आप भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव की स्तुति और पूजा भी कर सकते है। ऐसा माना जाता है की श्रावण महिना भगवान महादेव को अति प्रिय होता है और इस महीने मे अगर कोई उनका ध्यान करें और पूजा करे तो ऐसे भक्तों पर देवादिदेव महादेव की कृपा बनी रहती है।
अधिक मास या पुरुषोत्तम मास का पौराणिक महत्व (Historical or Mythological Significance of Adhik Maas or Purushottam Maas):
पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षसराज हिरण्यकश्यप श्री हरी विष्णु को अपना शत्रु समझता था। अमरत्व की प्राप्ति हेतु जब हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा जी की तपस्या शुरू की तो ब्रह्मा जी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अमरत्व के अलावा कोई और वरदान मांगने को कहा तो हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा की – “उसे संसार मे कोई भी देवी-देवता, नर-नारी, पशु, पक्षी, और असुर 12 महीनों मे किसी भी दिन उसे ना मार सके, और ना ही कोई उसे दिन मे और न रात मे, न घर के अंदर और न घर के बाहर, न किसी अस्त्र से और न किसी शस्त्र से मार सके”।
ब्रह्मा जी से हिरण्यकश्यप को ये वरदान दे दिया, जिसकी वजह से हिरण्यकश्यप का अहंकार और अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया और वह स्वयं को भगवान मानने लग गया। पृथ्वी को हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए श्री हरी विष्णु ने अधिक मास मे श्री नरसिंघ (नरसिंह) भगवान का अवतार लिया। नरसिंह भगवान ने संध्या के समय हिरण्यकश्यप को घर की देहरी (दहलीज़) पर अपनी गोद मे लिटाया और अपने नाखूनो से भगवान ने उसका सीना चीर दिया और उसे यमलोक भेज दिया।
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में क्या दान करना चाहिए ? (What Should be Donated in Purushottam Maas or Adhik Maas?)
पुरुषोत्तम मास यानी अधिक मास में शास्त्रों के अनुसार किए गए दान धर्म सिद्ध हो जाता है अर्थात पुरुषोत्तम मास में किया गया दान-धर्म का फल हमें अवश्य मिलता है। इस महीने में कई तरह के दान कर सकते हैं जैसे: पीले फल, पीले वस्त्र, घटदान और कांसे का संपुट, दीपदान, गरीब को अन्न दान, आदि कई तरह के ऐसे दान हैं जिसे करने से दान-कर्ता को पुण्य की प्राप्ति अवश्य मिलती है।
1. पीले फल दान: पुरुषोत्तम मास या अधिक मास के अंतर्गत हमें हो सके तो पीले फल मंदिर में चढ़ाने चाहिए और बच्चों को पीले फल दान करने चाहिए जैसे: केला, आम, संतरा, इत्यादि।
2. पीले वस्त्र दान: माना जाता है कि भगवान श्री हरि विष्णु पीले वस्त्र धारण करते हैं, इसी वजह से कहा जाता है कि पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में हो सके तो पीले वस्त्र ही दान करने चाहिये।
3. घट दान और कांसे का संपुट: पुरानी महिमाओं के अनुसार पुरुषोत्तम मास में जल से भरे हुए घड़े का और कांसे के संपुट में मालपुआ का दान आवश्य करना चाहिए जिससे धन-धान्य की प्राप्ति होना संभव माना जाता है। इस प्रकार के दान की महिमा पुरुषोत्तम महात्मय के 31 अध्याय में भी बताया गया है।
4. गरीब को अन्न दान: पुरुषोत्तम मास में हो सके तो भगवान विष्णु की पूजा के बाद किसी भी गरीब को अन्न का दान अवश्य करना चाहिए जिसके अंतर्गत चने की दाल का दान अधिक फलदाई होता है। इसके अलावा भी गरीब को कोई भोजन पदार्थ का दान करना भी पुण्यकारी माना जाता है।
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में क्या नहीं करना चाहिए ? (What Should not be Done in Purushottam Maas or Adhik Maas?)
पुरुषोत्तम मास को अधिक मास के साथ-साथ हिंदू पंचांग गणना के अनुसार मलमास भी माना जाता है, जिसके अंतर्गत इस माह में शुभ कार्य को करना वर्जित माना गया है। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार इस माह को मलमास मानते हुए इसके अंतर्गत शादी- विवाह, मुंडन-संस्कार, गृह-प्रवेश, आदि शुभ कार्य को करना अशुभ माना जाता है।
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में क्या खाना चाहिए ? (What Should be Eaten in Purushottam Mass or Adhik Mass?)
पुरुषोत्तम मास को सभी महीनों से उच्च उत्तम माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार अधिक मास में धार्मिक दृष्टि से दान धर्म और पूजा अर्चना करने वालों के लिए बहुत ही लाभदायक माना जाता है। इस महीने में हो सके तो व्रत भी करना चाहिए अथवा भगवान की नित्य पूजा-अर्चना करने के बाद एक बार भोजन ही करना चाहिए। हिंदू धर्म के अनुसार पुरुषोत्तम मास में हमें सात्विक और शुद्ध - पवित्र भोजन ही करना चाहिए। विशेष रुप से इस महीने में भोजन में सेंधा नमक ही काम में लेना चाहिए।
पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में क्या नहीं खाना चाहिए ? (What Should not be Eaten in Purushottam Mass or Adhik Mass?)
धार्मिक दृष्टि से पुरुषोत्तम मास बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। सनातन धर्म अनुपालन के अनुसार इस महीने में भगवान की भक्ति करनी चाहिए। साथ ही पुरुषोत्तम मास में कोई भी अशुद्ध चीज तथा कोई नशीला पदार्थ (मछली, मांस, चावल, चना, लहसुन, प्याज, राई, उड़द दाल, मूली, मदिरा) आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
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