Kajari Teej: Date, Significance, Story, How to Perform Pooja?
भारत में विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक परंपराएँ, तीज और त्योहार बड़े उत्साह के साथ विभिन्न स्थानो पर मनाये जाते है । इन्हीं तीज त्योहारों में से एक है कजरी तीज, जो हिंदू धर्म में मनाई जाने वाली प्रमुख तीन तीजों में से एक है, अन्य दो तीज है -हरतालिका तीज और हरियाली तीज । कजरी तीज का ये महत्वपूर्ण व्रत व त्योहार उत्तर-भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है । इस ब्लॉग में हम कजरी तीज के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे जैसे – कजरी तीज कब, क्यों, कैसे, मनाई जाती है आदि ।
कजरी तीज कब मनाई जाती है और 2023 में कजरी तीज कब है ?
हिंदू धर्म में कजरी तीज का उत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है । हिन्दू पंचांगानुसार कजरी तीज का त्योहार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है । हरियाली तीज के करीब पंद्रह दिन और रक्षाबंधन (राखी) के तीन दिन बाद कजरी तीज का उत्सव आता है । हम यह भी कह सकते है की जन्माष्टमी के 5 दिन पहले कजरी तीज मनाई जाती है ।
वर्ष 2023 में कजरी तीज का पावन उत्सव 02 सितम्बर, शनिवार के दिन मनाया जाएगा । कजरी तीज यानि तृतीया तिथि का आरंभ 01 सितंबर 2023 को रात 11:50 बजे से होगा और तृतीया तिथि 02 सितंबर 2023 को रात 08:49 बजे समाप्त होगी ।
कजरी तीज का महत्व क्या है ?
कजरी तीज का हिंदू धर्म एवं संस्कृति में विशेष महत्व है, विशेषतः विवाहित महिलाओं के लिए कजरी तीज उत्सव बहुत महत्व रखता है । कजरी तीज का त्योहार मनाए जाने के पीछे विभिन्न पारंपरिक एवं धार्मिक मान्यताएं है । कजरी तीज का पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है । इस पर्व का महत्व भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति को समर्पित है और यह पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ भी मनाया जाता है ।
कजरी तीज क्यों मनाई जाती है या कजरी तीज का व्रत क्यों रखते है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में आनंद और खुशियों के लिए कजरी तीज का व्रत रखती है और पूजा अर्चना करती है । महिलाएं कजरी तीज के दिन मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती है तथा माता से अपने पति के कल्याण, दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए शुभाशीष मांगती है ।
कजरी तीज पर का त्योहार किससे संबन्धित है या कजरी तीज के दिन किस भगवान की पूजा की जाती है?
कजरी तीज का त्योहार माता पार्वती से संबन्धित है । कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक बंधन को मजबूत करने के लिए मां पार्वती की पूजा करती है । धार्मिक कथाओं के अनुसार माँ पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए 108 बार जन्म लिया । कजरी तीज का त्योहार माँ पार्वती द्वारा महादेव के लिये उनके निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में भी मनाया जाता है । माँ पार्वती कि अटूट भक्ति के कारण भगवान शिव ने उन्हें अपनी भार्या के रूप में स्वीकार किया ।
कजरी तीज को अन्य किन नामों से जाना जाता है और कजरी तीज को विभिन्न राज्यों में क्या बोला जाता है?
भारत में विभिन्न स्थानों और राज्यों में कजरी तीज को सातुड़ी तीज, बूंदी तीज, भादौ तीज, कजली तीज, बूढ़ी तीज और बड़ी तीज आदि नामों से जाना जाता है । कजरी तीज से पहले आने वाली हरियाली तीज को छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है । कजरी तीज के उपवास के लिए महिलाएं सात्तू (सत्तू) बनाती है इस कारण कजरी तीज को सातुड़ी तीज भी कहते है ।
राजस्थान में कजरी तीज कहाँ की और क्यों प्रसिद्ध है ?
वैसे तो कजरी तीज पूरे राजस्थान में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन राजस्थान के बूंदी जिले की कजरी तीज दुनिया भर में प्रख्यात है । हर वर्ष सैकड़ों भारतीय और विदेशी सैलानी बूंदी के कजरी तीज उत्सव को देखने व शामिल होने आते है ।
प्रत्येक वर्ष बूंदी में 15 से 16 दिवसीय कजरी तीज महोत्सव का आयोजन किया जाता है । बूंदी कजली तीज महोत्सव का आयोजन सरकारी स्तर पर किया जाता है । इस महोत्सव में तीज माता की सवारी निकलती है और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ।
बूंदी में कजरी तीज मेला आरंभ होने के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है –
ठाकुर बलवंत सिंह बूंदी रियासत में गोठडा के एक जांबाज सैनिक भावना से ओतप्रोत जाबाज़ वीर थे । एक बार उनके एक साथी ने यू ही मज़ाक मे कहा की काश अपने यहाँ भी जयपुर की भांति ही तीज की शाही सवारी निकलती तो कितना अच्छा होता । अपने साथी की ये बात ठाकुर बलवंत सिंह को चुभ गयी और वो तीजोत्सव पर अपने साथियों के साथ जयपुर गये और तीज की शाही सवारी को गोठडा ले आए । उसके बाद से तीज माता की शाही सवारी गोठडा से निकलने लगी । बूंदी के राव राजा रामसिंह ने ठाकुर बलवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात तीज माता की सवारी को बूंदी ले आए और तब से बूंदी में तीज माता की शाही सवारी राजसी ठाठ-बाट से निकलने लगी ।
कजरी तीज के दिन महिलाएं क्या करती है ?
कजरी तीज के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है और अविवाहित कन्याएं एक अच्छे पति की प्राप्ति के लिए तीज का ये उपवास रखती है । कजरी तीज के इस व्रत को करने से खुशहाली व सुख-समृद्धि कि प्राप्ति होती है । कजरी तीज के दिन महिलाएं घरों को सजाती है और लोक-गीत गाती है व नृत्य भी करती है । इस दौरान महिलाएं एक दिन का "निर्जला" व्रत रखती है यानि महिलाएं पूरे दिन पानी नहीं पीती है ।
कजरी तीज के दिन महिलाएं नए कपड़े, और आभूषण पहनती है । महिलाएं अपने हाथों और पैरों पर मेंहंदी भी लगाती है और सोलह श्रृंगार करती है । इसके बाद महिलाएं माँ पार्वती कि पूजा करती है और कथा सुनती है । शाम को व्रत करने वाली सभी महिलाएं चंद्रदेव (चंद्रमा) का दर्शन करने के पश्चात पानी का सेवन कर अपना उपवास तोड़ती है ।
कजरी तीज में पूजा की थाली में क्या रखा जाता है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कजरी तीज के दिन विधि विधान अनुसार पूजा अर्चना करने से माँ पार्वती और भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते है और आशीर्वाद देते है । कजरी तीज के दिन पूजा के लिए विभिन्न सामग्रियों कि आवश्यकता होती है । कजरी तीज पूजा के लिए पूजा थाली को निम्नलिखित सामग्रियों से सजाया जाता है -
पूजा की थाली में एक पीला वस्त्र, कच्चा सूत, केले का पत्ता, बेलपत्र, धतूरा, जनेऊ, नारियल (श्रीफल), सुपारी, कलश, अक्षत (चावल), दूर्वा घास, घी, कपूर, अबीर-गुलाल, चंदन, नए वस्त्र, पंचामृत (गाय का दूध, गंगाजल, दही, मिश्री, शहद का मिश्रण) आदि सामग्री होना आवश्यक है ।
उपरोक्त लिखित सामग्रियों के साथ मां पार्वती को कजरी तीज के दिन सुहाग का सामान भी अर्पित किया जाता है जिसमें - हरे रंग की साड़ी, चुनरी, सोलह श्रृंगार से सामान जैसे - सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, कुमकुम, कंघी, बिछुआ, मेंहंदी, दर्पण और इत्र जैसी सामग्री रखना भी आवश्यक है ।
कजरी तीज की कहानी क्या है?
बहुत समय पहले किसी गाँव में एक गरीब ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था । ब्राह्मण का परिवार जैसे तैसे अपना गुजारा करता था । फिर भाद्रपद माह आया और इस माह में कजली तीज का पवित्र त्योहार भी आया । ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण को कहा की वो कजरी तीज का उपवास करेगी । कजरी तीज के दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण को उसके लिये चने के आटे का सत्तू लेकर आने को कहा ।
ब्राह्मण ने कहा - मैं सत्तू कहाँ से लाऊ मेंरे पास धन नही है । ब्राह्मण की पत्नी ने कहा - मुझे नहीं पता आप चाहे डाका डालो या चोरी करो लेकिन आज मेंरा कजली तीज का व्रत है इसलिए आपको मेंरे लिए सत्तू तो लाना ही पड़ेगा ।
रात्रि के समय ब्राह्मण अपने घर से बाज़ार की तरफ निकला और एक साहूकार की दुकान जो बंद थी उसके अंदर गया और सवा किलो सत्तू बनाने के लिए घी, चने की दाल और शक्कर तोल लिया और सात्तू का लड्डू बना दिया और वापस चुपचाप दुकान से निकाल कर घर जाने लगा । तभी दुकान में सो रहा नौकर नींद से जागा और चोर-चोर चिल्लाने लगा । यह सुनकर साहूकार दुकान पर आया और देखा के नौकरों ने ब्राह्मण को पकड़ रखा था । ब्राह्मण ने साहूकार से कहा मैं चोर नही हूँ । मैं एक निर्धन ब्राह्मण हूँ और आज मेंरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है तो मैं सिर्फ सवा किलो सातु का लड्डू बना के ले जा रहा था ।
साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली । ब्राह्मण के पास सिर्फ सातु का लड्डू ही मिला । ब्राह्मण ने साहूकार से कहा – घर पर मेंरी पत्नी मेंरी राह देख रही होगी और चाँद भी निकाल आया है, मुझे अभी जाने दीजिए मैं इसका मूल्य धीरे धीरे चुका दूंगा । ये बात सुनकर साहूकार ने ब्राह्मण से कहा – आज से तुम्हारी पत्नी मेरी धर्म बहन है । साहूकार ने ब्राह्मण को सातु के साथ साथ धन, गहने और पूजा सामग्री देकर विदा किया । फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की । जिस तरह से ब्राह्मण की स्थिति सुधरी वैसे ही कजली माता का आशीर्वाद सब पर बना रहे ।
कजरी तीज पर पूजा और व्रत कैसे करें?
देवी नीमड़ी को नीमड़ी माता के नाम से भी जाना जाता है । नीमड़ी माता कजरी तीज के इस पवित्र त्योहार से जुड़ी हुई है । नीमड़ी माता की पूजा कजली तीज के दिन की जाती है । कजली तीज की पूजा करने के लिए सबसे पहले पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ एक थाली में रखी जाती है । उस थाली में मौली, अक्षत, बिंदी, मेंहंदी, पुष्प, रोली, पताशे, इत्र, दीपक, धूप, गुड़, नीम की टहनी, कच्चा दूध आदि शामिल होते है ।
फिर भगवान गणेश जी को मन में प्रणाम करते हुए मिट्टी और गोबर से तालाब या तलाई की आकृति बनाई जाती है । इस निर्मित तलाई के किनारे या पाल को मजबूती प्रदान करने के लिये घी और गुड़ का प्रयोग किया जाता है और इस तालाब के पास नीम की एक टहनी भी लगाई जाती है । उस तालाब या तलाई में कच्चा दूध और जल डाला जाता है और उसके बाद इस तालाब के पास एक दीपक प्रज्ज्वलित किया जाता है । एक थाली में ककड़ी, केला, सेब, सातू आदि रखे जाते है ।
सबसे पहले, पूज्य श्री गणेश जी की पूजा की जाती है । उनके लिए मौली, अक्षत, धूप, पुष्प, इत्र और गुड़-पताशे अर्पित किए जाते है । इसके बाद, नीमड़ी माता जी की पूजा की जाती है । उनकी पूजा के लिए जल और रोली से छींटे दिए जाते है और फिर अक्षत अर्पित किए जाते है । नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेंहंदी, रोली (सिंदूर) और काजल की 13-13 बिंदियाँ लगाई जाती है । मेंहंदी और रोली (सिंदूर) की बिंदियाँ दायें हाथ की तर्जनी उंगली से ही लगाई जाती है और काजल की बिंदियाँ दायें हाथ की अनामिका अंगुली से लगाई जाती है ।
नीमड़ी माता को मौली चढ़ाये और उसके बाद काजल व पूजा थाली में रखी अन्य सामग्रियाँ भी एक-एक कर के चढ़ाये । उसके बाद, माता जी के सामने रखी गई वस्तुएँ तालाब या तलाई के पानी में दीपक की रोशनी में देखी जाती है, इसके साथ ही गहनों और साड़ियों के पल्लू आदि का दर्शन भी देखे जाते है । अंत में चन्द्र देव के दर्शन करने चाहिए । इसके पश्चात पानी पी सकते है और सत्तू का सेवन कर अपने उपवास का पारण (तोड़े या खोले) करें ।
कजरी तीज पर चंद्रदेव (चंद्रमा) को अर्घ्य कैसे दे? / चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि:
कजली तीज के दिन माँ नीमड़ी की पूजा करने के पश्चात रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है । सबसे पहले चन्द्र देव को जल और रोली के छींटे दिए जाते है । उसके बाद अक्षत, मौली और गुड़ अर्पित किया जाता है । अपने हाथ में एक चाँदी की अंगूठी और गेंहू के कुछ दाने हाथ में लेकर चंद्रमा को अर्घ्य दे और अपने स्थान पर ही खड़े खड़े चंद्रमा की परिक्रमा करें ।
कजरी तीज पर किस रंग के वस्त्र पहनने चाहिए ?
कजरी तीज पर सभी महिलाओं को लाल या हरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ।
कजरी तीज पर क्या न पहनें और क्या न करें?
विवाहित महिलाओं को कजरी तीज के दिन काले और सफेद रंग के वस्त्र और चूड़ियाँ नहीं पहननी चाहिए । इसके साथ ही ध्यान रहे की किसी से वाद-विवाद ना करें और किसी को अपशब्द ना कहे, और ना ही गुस्सा करें, घर में सभी का सम्मान करें ।
कजरी तीज के दौरान आप क्या खा सकते है?
जो महिलाएं कजरी तीज का व्रत कर रही है वो शाम को पूजा करने के पश्चात चंद्रमा के दर्शन के बाद ही पानी पी सकती है और सत्तू का सेवन कर व्रत का पारण कर सकती है । अगर कोई महिला गर्भवती है और उसने व्रत किया है तो वह पानी पी सकती है और फलाहार (फल) कर सकती है ।
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