Gangaur Festival 2023: Date, Significance, How Celebrated, and Types

Gangaur Festival
गणगौर त्योहार 2023:

भारत को अगर त्योहारों का देश कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योकि भारत में पुरे साल अलग-अलग राज्यों में कई त्यौहार मनाये जाते है। जैसे - तीज-त्यौहार, होली, दिवाली, रक्षाबंधन, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, छोटी तीज, बड़ी तीज, करवा चौथ, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, गणगौर, गणेश चतुर्थी, भाई दूज, तिल चौथ आदि कई छोटे और बड़े त्योहारों को बड़े ही धूमधाम से अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रीति रिवाजो से मनाया जाता हैं। आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से आपको राजस्थान में बहुत ही हर्षोल्लाष से मनाये जाने वाले गणगौर के त्योहार के बारे में विस्तार से बताने का प्रयास करेंगे।
गणगौर का त्यौहार:

गणगौर शब्द से तात्पर्य है - गण यानी कि "शिव" और गौर यानी कि "पार्वती"।गणगौर के व्रत में कुंवारी कन्याओं तथा विवाहित महिलाये शिव पार्वती की पूजा करती है। यह त्योहार होलिका दहन के कुछ ही दिनों बाद अर्थात् चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि के दिन इस त्यौहार को मनाया जाता है। यह व्रत कुंवारी कन्याओं तथा विवाहित महिलाओ द्वारा मनाया जाता है। गणगौर का व्रत कुंवारी कन्याए अच्छे वर की कामना तथा विवाहित महिलाये अपने सुहाग की दीर्घायु हेतु करती है।
राजस्थान में गणगौर का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

गणगौर का त्यौहार अन्य त्यौहारों की भांति ही राजस्थान का एक खास त्यौहार माना जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जो होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात् चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि तक 16 दिनों तक चलता है। इन दिनों में लड़कियां और विवाहित स्त्रियां हमेशा बगीचे में जाकर कलश भर कर कलश को फूल - पत्तो से सजाकर गणगौर के गीत गाती हुई अपने घर लाती हैं। इसी तरह से 16 दिन तक यह त्यौहार चलता है फिर 16वें दिन हर विवाहित स्त्री सोलह श्रृंगार कर और कुंवारी कन्या बड़े ही चाव से तैयार होकर ही बगीचे से फूल, दाब,और आम के पत्तो से पानी के कलश को सजाती हैं तथा पूजन के साथ ही रेणुका की गौरा बनाकर इस पर सुहाग की सामग्री - महावर, सिंदूर और चूड़ियां चढ़ाती हैं "गौर - गौर गोमती एसर पूजे पार्वती" गाती हुई चंदन, अक्षत, दीप, धूपबत्ती व नैवेद्य के साथ इस व्रत को विधि - विधान से पूर्ण करती हैं। इस दिन कुंवारी कन्या अपने अच्छे वर की कामना तथा विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना के साथ भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करती हैं।नव विवाहित स्त्रियां इस व्रत को अपने पीहर आकर करती हैं।
गणगौर का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

भारत देश में हम कई छोटे - बड़े तीज - त्योहार मनाते हैं इन सब तीज - त्योहारों को मनाने के पीछे इनकी अपनी एक कहानी छिपी हुई है। हम आज त्योहार मनाते हैं तो इन त्योहारों को मनाने के कारण भी हम अवश्य पता होना चाहिए। इसी तरह से हम आज आपको गणगौर पर्व को मनाने का कारण बताने जा रहे हैं - 

गणगौर का त्योहार आखिर क्यों मनाया जाता है यह हर किसी के मन में आया ही होगा। आज हम यहां गणगौर त्योहार को मनाने के पीछे की मान्यता के बारे में बात करते हैं तो इस दिन कुंवारी कन्या और सुहागिन स्त्रियां आदि अपने मनपसंद वर की प्राप्ति तथा अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं और इसके अंतर्गत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह पर्व भारत के राजस्थान राज्य में 16 दिन तक बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
गणगौर का त्यौहार कब मनाया जाता है?

भारत एक पर्वो का देश हैं यहां अनेक  त्योहार तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं तो आज बात करते हैं गणगौर के त्योहार की बात करते हैं तो गणगौर का त्योहार लगभग 16 दिनों तक मनाया जाता हैं। हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया को यह त्योहार शुरू होकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तृतीय तिथि तक पूर्ण होता हैं। गणगौर पर्व की शुरुआत पौराणिक काल से हुई थी और तब से आज तक हर वर्ष इस पर्व को बड़ी ही विधि- विधान से मनाया जाता है। इस वर्ष गणगौर का त्यौहार 24 मार्च को मनाया जायेगा | 
गणगौर कितने प्रकार की होती है?

वैसे तो गणगौर एक ही होती है परन्तु अलग - अलग शहरो में इसे अलग-अलग रीती-रिवाजो के अनुसार अलग पहचान दे दी गयी। तो आइये आज हम आपको गणगौर के प्रकार बताते है -

धींगा गणगौर: चैत्र शुक्ल तृतीया से वैशाख कृष्ण पक्ष की तृतीया तक जोधपुर में धींगा गणगौर मनाई जाने वाली गणगौर है, इस गणगौर की खासियत है कि इसे अविवाहित या विवाहित स्त्रियां ही नहीं बल्कि विधवा स्त्रियां भी अगले जन्म में इच्छित वर लम्बे सुहाग की कामना से पूजती हैं। 

गुलाबी गणगौर: गुलाबी गणगौर राजस्थान राज्य के नाथद्वारा शहर में चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस त्यौहार पर नाथद्वारा में गणगौर की सवारी के दौरान स्त्री और पुरुष को गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना होता हैं, तथा पूरे शहर में लाल-गुलाबी गुलाल से खेला जाता हैं।

ईसर - गणगौर: यह गणगौर बीकानेर में मनाई जाती है। इसकी खासियत है कि राजस्थान में सब जगह ईसरजी के साथ गणगौर की सवारी निकली जाती है परन्तु बीकानेर में अकेली गणगौर की सवारी निकली जाती है।    

गणगौर - नाव: यह राजस्थान में उदयपुर  शहर की प्रसिद्ध है। इसके तहत गणगौर की सवारी शहर से होती हुई पिछोला झील के गणगौर घाट तक पहुंचती है जंहा महिलाओ द्वारा पार्वती जी की मूर्तियों की बड़े ही ठाट - बाट से पूजा अर्चना की जाती हैं। 
गणगौर का त्योहार कितने दिन तक मनाया जाता है:

गणगौर का त्योहार होलिका दहन के दूसरे दिन से अर्थ चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से शुरू होकर चैत्र शुक्ला प्रतिपदा तृतीय तिथि तक मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के दूसरे दिन गौरा अर्थात् माता पार्वती अपने पीहर आती है तो था 16 दिनों के बाद ईश्वर अर्थात भगवान शिव उन्हें फिर से लेने के लिए आते हैं और इसी दिन चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन अपने पीहर से उनको विदाई दी जाती है।

इससे तात्पर्य निकलता है कि गणगौर का त्योहार 16 दिनों तक मनाया जाता है और यह त्योहार नवविवाहिता अपने पीहर में आकर मनाती है।
राजस्थान में कहाँ की गणगौर प्रसिद्ध हैं?

राजस्थान में गणगौर जयपुर शहर के प्रसिद्ध है। जयपुर में गणगौर पर्व का उत्सव सबसे भव्य रूप में मनाया जाता है। जयपुर में निकलने वाली गणगौर की सवारी जो की बहुत ही आकर्षक और भव्य रूप में होती है, इसे देखने के लिए दुनिया के कई स्थानों से पर्यटक जयपुर आते हैं। जयपुर में गणगौर त्रिपोलिया बाजार मैं मुख्य रूप से मनाई जाती है जहां पर सर्वप्रथम राज परिवार की महिलाएं सिंजारा उत्सव मनाते हैं उसके अगले दिन गणगौर माता को चांदी की पालकी में बैठाकर, साथ ही ऊंट घोड़े हाथी रथ पालकी आदि के साथ पुरुष और महिलाएं नाचते - गाते लोग इसकी सवारी निकालते हैं और सभी महिलाएं गणगौर माता की पूजा कर इस पालकी को विदाई देती हैं।
तत्पश्चात जयपुर में इसके अगले दिन बूढ़ी गणगौर की सवारी भी निकाली जाती है और इस बूढ़े गणगौर की सवारी निकालने के पीछे तर्क दिया है कि 1 दिन पहले गणगौर की जो भव्य सवारी निकाली जाती है सवारी में इतनी भीड़ होती है कि बच्चे और बूढ़े इस बीच गणगौर की सवारी को नहीं देख पाते हैं तो उनके लिए अगले दिन गणगौर की एक और सवारी निकालने का प्रावधान रखा गया है इसी सवारी को बूढ़ी गणगौर की सवारी कहा गया है ताकि बच्चे और बड़े - बुजुर्ग लोग भी इस सवारी का आनंद लाभ ले सके।इसके अलावा भी राजस्थान में उदयपुर,जोधपुर,बीकानेर और जैसलमेर की गणगौर भी प्रसिद्ध मानी  जाती है। 
गणगौर की पूजा सामग्री में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं गुणे और फल:

गणगौर पर्व पूरी आस्था से भरा हुआ पवित्र त्योहार माना जाता है तथा इसकी पूजा अर्चना भी बड़ी ही श्रद्धा के साथ की जाती है। गणगौर का व्रत  करने वाली महिलाएं पूजन सामग्री में पूजा करने के लिए अपने घरों से आटा, मैदा या बेसन आदि के गुणे और फल बनाती है।यह फल मीठे और नमकीन दोनों तरह के होते हैं। यहां पर गुने का तात्पर्य गहनों से हैं। इन गुणों का गणगौर पूजन में विशेष महत्व माना जाता है अर्थात् मान्यता है कि जितने गहने यानी घोड़े पार्वती जी को चढ़ाए जाते हैं उतना ही व्रत करने वाली स्त्री का धन और वैभव बढ़ता जाता है। पूजा के तत्पश्चात यह घोड़े महिलाएं अपनी सास जेठानी और ननंद के पैर छूकर उन्हें देती हैं।
गणगौर के त्योहार पर कौन सी मिठाई बनाई जाती हैं?

गणगौर एक ऐसा पावन पर्व है जो हर घर में विवाहित स्त्रियां कथा कुंवारी कन्या बड़े ही चाव से इस पर्व को मनाती है और इसका व्रत पूर्ण रीति रिवाज से करती है। गणगौर व्रत को करने वाली सभी महिलाएं अपने घरों पर आटे और मैदे से मीठे शक्करपारे और पूरियां बनाती हैं, जोकि आटे और मैदे में शक्कर मिलाकर बनाए जाते हैं। इसके अलावा बेसन के नमकीन शक्करपारे और पूरिया भी बनाई जाती हैं। गणगौर का व्रत करने वाली महिलाएं सर्वप्रथम इनसे ही अपने व्रत को तोड़ती हैं।
 

गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
 

पार्वती का आला-गीला, गौर का सोना का टीका
 

टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
 

करता करता आस आयो वास आयो
 

खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
 

बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
 

सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
 

जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
 

राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
 

कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
 

गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
 

ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
 

म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
 

लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
 

झर झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्योइस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोलें : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो

गणगौर माता की कथा 

राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब. राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये. एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया. छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे. छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे, सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे. सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया. माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो. बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी, माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे. ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली, बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा. माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले. माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला, चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल गई. उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है, सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है. है गणगौर माता, जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना. कहता ने, सुनता ने , सारे परिवार ने.  इस तरह से यह गणगौर व्रत कथा पूरी होती हैं 


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