Everything About Raksha Bandhan You Should Know
TABLE OF CONTENT
- रक्षाबंधन (राखी) का मतलब क्या होता है?
- रक्षाबंधन (राखी) की शुरुआत कब हुई?
- रक्षाबंधन (राखी) को नारियल पूर्णिमा क्यों कहा जाता है?
- रक्षाबंधन (राखी) को विभिन्न राज्यों में क्या बोला जाता है?
- 2023 में रक्षाबंधन (राखी) का त्योहार कब मनाया जाएगा?
- रक्षाबंधन (राखी) का त्योहार कहां-कहां मनाया जाता है?
- रक्षाबंधन (राखी) के त्योहार में पूजा की थाली में क्या-क्या रखा जाता है?
- रक्षाबंधन (राखी) की कहानी क्या है?
- रक्षाबंधन (राखी) के दिन किस भगवान की पूजा की जाती है?
- भद्रा क्या है? और भद्रा काल में राखी (रक्षाबंधन) क्यू नहीं बांधी जाती है?
- राखी (रक्षाबंधन) को हाथ में कितने दिनों तक बांधे रखना चाहिए और खोलने के बाद इसका क्या करना चाहिए?
रक्षाबंधन (राखी) का मतलब क्या होता है?
रक्षाबंधन जैसा कि हमे इस नाम से प्रतीत हो रहा हैं "रक्षा यानि कि सुरक्षा और बंधन यानि बंधना या बाध्य" । तो यह शब्द भाई-बहन के एक प्रसिद्ध त्योहार के लिए उपयोग किया जाता है जिसमे एक बहन भाई के हाथ में एक रक्षासूत्र यानि कि राखी बांध कर अपने भाई से अपनी रक्षा की कामना करती है।
रक्षाबंधन (राखी) की शुरुआत कब हुई?
भारतीय इतिहास के अनुसार रक्षाबंधन त्योहार की शुरुआत लगभग 6 हजार वर्ष पहले हुई थी। इतिहास के पन्नो में इसके कई साक्ष्य देखने को मिल सकते हैं परन्तु अधिकांश इतिहासकारो के अनुसार इसकी शुरुआत मध्यकालीन युग में हुई, जब राजपूत शासकों और मुस्लिम वर्ग में युद्ध का संघर्ष चल रहा था। उस समय में चित्तौड़ की एक रानी कर्णावती ने हुमायूँ को रक्षासूत्र भेज कर अपनी प्रजा की रक्षा की कामना की, तब से ही इस त्योंहार की शुरुआत हुई।
रक्षाबंधन (राखी) का अन्य नाम क्या है?
रक्षाबंधन पर्व को श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाने के कारण इसे "श्रावणी" तथा दूसरे शब्दों में इसे "सलूनो" भी कहा जाता हैं।
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रक्षाबंधन (राखी) को नारियल पूर्णिमा क्यों कहा जाता है?
रक्षाबंधन को नारियल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और इसके पीछे का कारण भारत के दक्षिणी भाग से जुड़ा हुआ है । हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है । नारियल पूर्णिमा को मछुआरों का त्योहार माना जाता है। इसके पीछे का रहस्य बताया जाता है कि मछुआरे नारियल पूर्णिमा के दिन भगवान इंद्र जो वर्षा के देवता हैं और भगवान वरुण जो समुद्र के देवता है, की पूजा करते है और इस दिन से मछली पकड़ने की शुरुआत करते हैं । मछुआरे इस पूजा के माध्यम से वरुण देवता और इंद्र देवता से अपने लिए सुरक्षित भविष्य की कामना करते हुए समुद्र में नारियल अर्पण करते हैं।
इस प्रकार से श्रावण पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारतीय लोग इंद्र देव और वरुण देवता के लिए व्रत उपवास भी करते हैं और इस दिन अर्पित किए जाने वाले नारियल फल को शुभ संकेत भी माना जाता हैं। इस प्रकार से समुद्र और वरुण देवता की पूजा करके नारियल को समुद्र किनारे खड़े होकर धीरे से पानी छोड़ना होता है जो अच्छी सृजनशक्ति का प्रतीक भी माना गया हैं।
रक्षाबंधन (राखी) को विभिन्न राज्यों में क्या बोला जाता है या किस नाम से जाना जाता है?
भारतीय संस्कृति के अनुसार हम हर राज्य में अलग-अलग विभिन्नताएं देख सकते है, जैसा कि आज हम बात कर रहे यहाँ पर मनाये जाने वाले त्योंहार रक्षाबंधन की जिसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नियम, संस्कृति और अलग परम्पराओ के साथ मनाया जाता है। भाई -बहन के इस खास त्यौहार को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है :- कजरी पूर्णिमा, पवित्रोपन्ना, अवनी अवित्तम, तथा नारियल पूर्णिमा इत्यादि।
तो आइये आज हम जानते है कि रक्षाबंधन के त्योहार को भारत के किन-किन राज्यों में किस नाम से जानते है ?
1. कजरी पूर्णिमा :- मध्य भारत जैसे: छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में रक्षाबंधन पर्व को कजरी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है अर्थात श्रावण की पूर्णिमा के दिन यहां की पुत्रवती महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत की तैयारी महिलाएं यहां पर श्रावणी अमावस्या के बाद की नवमी से ही शुरू कर देती है। जिसके तहत श्रावणी नवमी के दिन महिलाएं पेड़ के पत्तों के पात्रों में अपने-अपने खेत से मिट्टी भर लाती है और इसमें जौ के बीज बो कर इस पात्र को अंधेरे वाले स्थान पर रखती हैं, जिसके पास सफेद चावल से सुंदर सी चित्रकारी भी की जाती हैं।
अंत में श्रावणी पूर्णिमा के दिन महिलाएं इसे सिर पर उठाकर जुलूस निकालते हुए तालाब या नदी में विसर्जन करने को ले जाती है। साथ ही इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए उपवास कर इस त्यौहार को कजरी पूर्णिमा के रूप में मानती है।
2. पवित्रोपन्ना :- भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते को गुजरात राज्य में पवित्रोपन्ना का नाम दिया गया है। इसके तहत गुजरात में श्रावणी पूर्णिमा के दिन भाई-बहन के प्रेम के साथ रक्षाबंधन पर्व के दिन भगवान शिव की भक्ति के साथ मनाया जाता है क्योंकि श्रावण महीने का यह अंतिम दिवस होता है
तो इस दिन शिव भक्त बड़े जोरों-शोरों से शिव पूजन करते हैं तथा भगवान भोलेनाथ को रुई की बत्तियां यानि पंचगव्या जो कि गाय के दूध,दही और घी में डुबोकर एक पिंडी को लपेटकर रक्षा की भावना के साथ शिवलिंग को अर्पित की जाती हैं । अंततः सबके मूल में रक्षा की भावना के साथ गुजरात में इस त्योहार को पवित्रोपन्ना कहा गया हैं।
3. अवनी अवितम :- भारत के कुछ राज्य जैसे उड़ीसा, केरल, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु में यजुर्वेद पढ़ने वाले ब्राह्मण श्रावणी पूर्णिमा के दिन को अवनी अवित्तम के रूप में मनाते हैं । इस दिन पुराने पापों से छुटकारा पाने के लिए एक महासंकल्प लिया जाता है जिसके तहत ब्राह्मण लोग यज्ञोपवित संस्कार के द्वारा पहनी हुई जनेऊ को उतारकर जल में विसर्जित कर स्नान करते हैं और इसके बाद समुद्र किनारे महासंकल्प लेते हुए नई जनेऊ धारण करते हैं ।
4. नारियल पूर्णिमा :- रक्षाबंधन को नारियल पूर्णिमा कहा जाने के पीछे का तथ्य भारत के दक्षिणी भाग से जुड़ा हुआ है । भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है । नारियल पूर्णिमा के दिन खासकर मछुआरों का त्योहार माना जाता है। इसके पीछे का रहस्य बताया जाता है कि मछुआरे इस दिन भगवान इंद्र जो वर्षा के देवता माने जाते हैं और समुद्र के देवता वरुण देवता की पूजा करके ही आज से मछली पकड़ने की शुरुआत करते हैं । मछुआरे इस पूजा के माध्यम से वरुण देवता और इंद्र देवता से अपने लिए सुरक्षित भविष्य की कामना करते हुए समुद्र में नारियल अर्पण करते हैं।
इस प्रकार से श्रावण पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारतीय लोग इंद्र देव और वरुण देवता के लिए व्रत उपवास भी करते हैं और इस दिन अर्पित किए जाने वाले नारियल फल को शुभसूचक भी माना जाता हैं।
2023 में रक्षाबंधन (राखी) का त्योहार कब मनाया जाएगा?
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा यानी कि सावन के महीने के अंतिम दिन, को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है । इस वर्ष 30 अगस्त 2023, बुधवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा । लेकिन इस वर्ष 30 अगस्त को भद्रा के कारण रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त रात्रि 9 बजकर 2 मिनिट से प्रारम्भ होकर 31 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक शुभ माना जा रहा है ।
रक्षाबंधन (राखी) का त्योहार कहां-कहां मनाया जाता है?
हिन्दू संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है जिसे लगभग 6 हजार वर्ष पहले से मनाते आ रहे है । भारत में रक्षाबंधन का त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, तथा उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में बड़े खुशनुमा अंदाज़ में मनाया जाता है। इन राज्यों में इस पर्व पर सार्वजानिक अवकाश भी रहता हैं।
रक्षाबंधन भारत के अलावा नेपाल, मलेशिया और जहां भारतीय लोग निवास करते हैं उन अन्य देशों में भी मनाया जाने लगा है ।
रक्षाबंधन (राखी) के त्योहार में पूजा की थाली में क्या-क्या रखा जाता है?
भारतीय संस्कृति के अनुसार हर पूजा को विधि-विधान से पूरी करना शुभ फलप्रद माना जाता है, जिसके अंतर्गत सबसे पहले पूजा थाली में सम्पूर्ण पूजन सामग्री का होना आवश्यक होता है। तो आइये जानते है कि भाई-बहन के इस पावन पर्व रक्षाबंधन पर पूजा की थाली में आवश्यक सामग्री -
1. राखी - अपने भाई के हाथ पर बांधने के लिए रक्षासूत्र यानि कि राखी।
2. सिंदूर - राखी बांधने से पहले भाई के माथे पर तिलक लगाने के लिए सिन्दूर, जिसे माँ लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
3. अक्षत - भाई को तिलक करने पर अक्षत अवश्य लगाए। अक्षत का महत्व पूजा थाली में पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। पूजा थाली में अक्षत के उपयोग से भाई की लम्बी उम्र और उसके जीवन में सम्पूर्णता बनी रहती है।
4. नारियल - भाई - बहन का यह पवित्र त्योहार नारियल बिना अधूरा माना जाता है हिन्दु-धर्म मान्यता के अनुसार बहन भाई को राखी बांधने के पश्चात भाई के हाथो में नारियल का फल देती है, जो भगवान शिव का आशीर्वाद रूप माना जाता हैं।
5. मिठाई - रक्षाबंधन पर्व पर पूजा थाली में मिठाई का भी अहम् स्थान है क्योंकि हर शुभ और ख़ुशी के अवसर पर एक - दूसरे का मुँह मीठा करवाना भी हिंदी शास्त्रों के अनुसार शुभ माना जाता है। रक्षाबंधन पर्व पर बहन भाई को राखी बांध कर मिठाई खिलाती है।
6. दीपक - किसी पूजा को सम्पूर्ण करने के लिए पूजा की थाली में दीपक से आरती होना आवश्यक होता है, अर्थात अग्नि को साक्ष्य होना जरुरी माना जाता है। इस अवसर पर बहने पूर्ण विधि-विधान से भाई को राखी बांध कर भाई की आरती उतारती है।
7. जल पात्र - प्रत्येक पूजा की थाली में जल का लोटा अवश्य होना चाहिए क्योंकि पूजा - आरती के पश्चात जल छोड़ना चाहिये। अथवा राखी बांधने के पश्चात भाई के दांये - बांये तरफ जल छोड़ना चाहिए इससे भगवान का आशीर्वाद बना रहता है।
रक्षाबंधन (राखी) की कहानी क्या है?/ हम रक्षाबंधन क्यों मनाते है ?
भारतीय इतिहास के अंतर्गत रक्षाबंधन पर्व से जुड़े कहीं प्रसंग है जिससे रक्षाबंधन पर्व मनाने की शुरुआत हुई। तो आइए आज हम यहां इस पर्व से जुड़ी मुख्य प्रचलित कथा के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं :
भगवान श्री कृष्ण की कथा के अनुसार बताया गया हैं कि एक बार दैत्यों यानि कि राक्षसों में तथा सुरों (देवता) में युद्ध शुरू हो गया था , जो युद्ध लगभग 12 वर्षों तक जारी रहा। तब इस युद्ध में राक्षसों ने देवताओं को पराजित करते हुए उनके प्रतिनिधि इंद्र को भी हरा दिया था। ऐसी स्थिति मे सभी देवता सहित इंद्र देव भी अमरावती चले गए थे। तब राक्षसों ने तीनों लोकों को अपने वश में करके उसे अपना ही राजपाट घोषित कर दिया और कहा कि इंद्रदेव सभा में नहीं आए तथा अपने देवताओ व सभी मनुष्यों से कह दिया कि वे सब यज्ञ - कर्म ना करके मेरी पूजा करना शुरू करें।
तब उस समय देवताओं का बल घटने लगा और दैत्य राजकीय आज्ञा से यज्ञ कर्म पठन-पाटन एवं उत्सवादी समाप्त होने लगे। यह सब देख इंद्र भगवान अपने गुरु बृहस्पति के पास आए तथा उनके चरणों में गिर कर निवेदन किया कि 'हे गुरुवर ऐसी दशा में मुझे अपने प्राण त्यागने पड़ जायेंगे इस स्थिति में मुझे वरदान दो कि मैं युद्ध भूमि में दैत्यों को पराजित कर सकूं।' ऐसे में इंद्र देव के गुरु बृहस्पति ने उनकी वेदना सुनकर उन्हें रक्षा विधान करने का सुझाव दिया जिसे श्रावण पूर्णिमा को सुबह की बेला में इस मंत्र के साथ संपन्न किया गया था।
येन बद्धओ बलिर्राजा दानवेंद्रो महाबलः ।
तेन त्वांभिवधनामि रक्षे मा चल मा चल:।
इस पर इंद्र की पत्नी इंद्राणी बृहस्पति गुरु की यह वार्ता सुनकर इस अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर युद्ध भूमि के में लड़ने के लिए भेजा। तब इस रक्षाबंधन के प्रभाव से दैत्य पराजित हुए और इंद्र की विजय हुई , अर्थात इस 12 वर्षों के युद्ध में इंद्र को रक्षाबंधन के प्रभाव से ही विजय पाना सफल हुआ। तब से ही रक्षाबंधन पर्व को राखी बांधकर हिंदू धर्म में मनाया जा रहा है।
रक्षाबंधन (राखी) के दिन किस भगवान की पूजा की जाती है?
यह पर्व सावन महीने के अंतिम दिन यानि कि श्रवण माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा को मनाया जाता है तो श्रवण महीने के इस अंतिम दिन भगवान् शिव की पूजा - आराधना की जाती है अथवा शिव भक्त इस दिन को भगवान शिव की पूजा गंगाजल तथा कच्चे दूध से अभिषेक, रुद्राभिषेक, तथा सहस्त्रधारा अभिषेक करते हुए कई तरह से शिव की पूजा करते है।
इसके अलावा इस दिन भगवान इन्द्र के गुरु बृहस्पति की भी पूजा करते है क्योंकि एक पौराणिक कथा के अनुसार गुरु बृहस्पति के दिए गए सुझाव के अनुसार ही इंद्राणी द्वारा बांधे गए रक्षासूत्र के प्रभाव से देवेन्द्र ने दैत्यों को पराजित कर तीनों लोको पर पुनः अपना राजपाट हासिल किया था।
दूसरी और रक्षाबंधन पर्व पर श्रवण कुमार के तथा सभी देवताओ को राखी बांधना भी आवश्यक माना जाता हैं।
रक्षाबंधन (राखी) के प्रकार क्या है?
राखी के प्रकार की बात करे तो आजकल बाज़ारों में सस्ती से लेकर महंगी से महंगी राखी मिल रही है। वैसे वास्तविक रूप में राखी कच्चे सूत की तथा लाल रंग की मोली को ही माना जाता है। इसके अलावा राखी चाँदी-सोने, आर्टिफिशल स्वस्तिक, चन्दन तथा रुद्राक्ष की व् अन्य कई प्रकार की फैंसी राखिया भी बाजार में मिलती है।
रक्षाबंधन (राखी) किस हाथ में बाँधनी चाहिए ?
रक्षाबंधन भाई-बहन का एक पवित्र त्यौहार माना जाता है इसके पीछे कई देवताओ जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा और माँ सरस्वती से जुड़े हुए प्रसंगो की व्याख्या की गई है, इन मान्यताओं के अनुसार रक्षा सूत्र को शुभ मुहूर्त में हमेशा दांये हाथ में ही बांधना चाहिए।
भद्रा क्या है? और भद्रा काल में राखी (रक्षाबंधन) क्यू नहीं बांधी जाती है?
भद्रा नाम का शाब्दिक अर्थ - कल्याणकारी है। परन्तु हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भद्रा के अर्थ के विपरीत विष्टिकरण या भद्रकाल में शुभ कार्य करना अशुभ और असफल होना माना गया है, क्योंकि पृथ्वी लोक की भद्रा सबसे अशुभ मानी जाती है।
दूसरी और भद्रा में राखी नहीं बंधवाने के पीछे एक पौराणिक कथा के अनुसार लंका के राजा रावण ने अपनी बहन से भद्राकाल में राखी बंधवाई तो कहा गया कि रावण का सर्वनाश भद्राकाल में राखी बंधवाने से ही हुआ था। तब से ही शास्त्रों में भद्रा में राखी बांधने को अशुभ माना गया है।
रक्षाबंधन (राखी) को हाथ में कितने दिनों तक बांधे रखना चाहिए और खोलने के बाद इसका क्या करना चाहिए?
राखी शुभ मुहूर्त में बाँधी जानी चाहिए तो इसे उतरने का समय शास्त्रों के अनुसार तय बताया गया है अर्थात राखी को 21 दिन से ज्यादा नहीं बँधी रखनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी या झलझुलनि एकादशी तक खोल ही देनी चाहिये।
राखी उतारने के बाद इसे जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
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