पितृ पक्ष 2023: श्राद्ध क्या होता है, प्रकार, तिथि और पिंडदान
पितृ पक्ष (श्राद्ध):
सनातन धर्म में पितृ पक्ष का अधिक महत्व है। पितृ पक्ष को पितृपक्ष, 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' के नाम से भी जाना जाता है। तमिल में पितृ पक्ष को आदि अमावस्या, केरल में पितृ पक्ष को करिकादा वावुबली और महाराष्ट्र में पितृ पक्ष को आदि अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) का मतलब क्या है?
पितृ पक्ष का मतलब है कि पितृ को/का पिंडदान करना या तर्पण देना | हिंदू धर्म में यही मान्यता है कि पितृ जिनकी मृत्यु हो चुकी है वो अश्विन माह की प्रतिपदा से लेकर पितृ कार्य अमावस्या तक मान-समान एवं भोजन प्राप्त करते हैं।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) कितने प्रकार के होते हैं ?
हिंदू शास्त्र के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं -
नित्य श्राद्ध -नित्य श्राद्ध में जल और अन्न के साथ प्रतिदिन श्राद्ध किया जाता है। अन्न की अनुपस्थिती में केवल जल के द्वार ही नित्य शरद करके पित्रो को प्रसन्न किया जाता है।
नैमित्तिक श्राद्ध -नैमित्तिक श्राद्ध किसी को निमित मानकर किया जाता है।
काम्या श्राद्ध -काम्या श्राद्ध मनोकामना पूर्ण करने के लिए किया जाता है।
वृद्धि श्राद्ध -वृद्धि श्राद्ध विवाह, संतान प्राप्ति वंश व्रत के लिए किया जाता है।
सपिंडन श्राद्ध -सपिंडन श्राद्ध मृत व्यक्ति के बारहवे दिन किया जाता है।
पर्व श्राद्ध -पर्व श्राद्ध प्रत्येक महीने की अमावस्या पर किया जाता है।
गोष्ठी श्राद्ध -गोष्ठी का मतलब समूह होता है। गोष्ठी श्राद्ध परिवार के सभी सदस्यो द्वारा मिलकर किया जाता है।
कर्मागं श्राद्ध -कर्मांगं श्राद्ध को सोलह संस्कारो के समय किया जाता है।
शुद्धयर्थ श्राद्ध -शुद्धयर्थ श्राद्ध परिवार की शुद्धि के लिए किया जाता है।
पुष्टयर्थ श्राद्ध -पुष्टयर्थ श्राद्ध तन मन धन की पुष्टि के लिए किया जाता है।
यात्रार्थ श्राद्ध -यात्रार्थ श्राद्ध तीर्थ जाने पर किया जाता है ।
दैविक श्राद्ध -दैविक श्राद्ध देवताओ को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) 2023 में कब और कौनसी तिथि है?
पितृपक्ष का आरंभ 29 सितंबर 2023 से हो रहा है और इसका समापन 14 अक्टूबर 2023 को होगा ।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) की तिथिया कौन - कौन सी है ?
दिनांक | श्राद्ध |
---|---|
29 सितंबर, 2023 | पूर्णिमा श्राद्ध |
30 सितंबर,2023 | प्रतिपदा श्राद्ध |
1 अक्टूबर,2023 | द्वितीया श्राद्ध |
2 अक्टूबर,2023 | तृतीया श्राद्ध |
3 अक्टूबर,2023 | चतुर्थी श्राद्ध |
4 अक्टूबर,2023 | पंचमी श्राद्ध |
5 अक्टूबर,2023 | षष्ठी श्राद्ध |
6 अक्टूबर,2023 | सप्तमी श्राद्ध |
7 अक्टूबर,2023 | अष्टमी श्राद्ध |
8 अक्टूबर,2023 | नवमी श्राद्ध |
9 अक्टूबर,2023 | दशमी श्राद्ध |
10 अक्टूबर,2023 | एकादशी श्राद्ध |
11 अक्टूबर,2023 | द्वादशी श्राद्ध |
12 अक्टूबर,2023 | त्रयोदशी श्राद्ध |
13 अक्टूबर,2023 | चतुर्दशी श्राद्ध |
14 अक्टूबर,2023 | सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) कितनी पीढ़ी तक किया जाता है?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) तीन पीढ़ी तक किया जाता है। पितृ पक्ष (श्राद्ध) में तीन पीढ़ियों तक के पिता के और तीन पीढ़ियों तक के माता के पूर्वजो का तर्पण किया जाता है। इसमें माता- पिता ,दादा- दादी ,नाना- नानी को शामिल किया गया है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) करने का अधिकार किसको होता है?
हिंदू शास्त्र में श्राद्ध का अधिकार पुत्र को ही दिया जाता है। लेकिन पुत्र नहीं पर पत्नी, पुत्री, बहू के द्वारा भी श्राद्ध किया जाता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) कर्म के लिए कौन से स्थान प्रसिद्द है ?
श्राद्ध कर्म के लिए गयाजी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है | धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार जो पत्थर में पिंडदान के लिए आता है उसके 108 कुल और 7 तीर्थों के अवशेष होते हैं। धार्मिक सिद्धांत के अनुसार भगवान श्री हरि यहां पर पितृ देवता के रूप में भगवान रहते हैं। इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में कौओं और श्वान को क्यों खिलाया जाता है ?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में पित्रो ,ब्राह्मण,परिजनों के अलावा, श्वान और कौवे का ग्रास निकाला जाता है। ऐसा माना जाता है कि कौवे में पितृ का रूप होता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) के नियम क्या है?
- 1. श्राद्ध करते समय मुँह दक्षिण दिशा की और किया जाना चाहिए |
- 2. पिण्डदान करते समय सफ़ेद या पीले कपड़ो को पहना जाए तो यह शुभ माना जाता है |
- 3. श्राद्ध में गाय के दूध से बनी सामग्री दही, मिठाई उपयोग मे लिया जाना चाहिए |
- 4. श्राद्ध में अपनी क्षमता के अनुसार चांदी के बर्तन का प्रयोग किया जाना चहिए |
- 5. श्राद्ध के दिन क्रोध करने से बचना चाहिए |
- 6. पूर्वजो का श्राद्ध अपने ही घर में या अपनी ही भूमि पर किया जाना चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में वर्जित कार्य कौन कौन से हैं?
- श्राद्ध में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे शादी ,मुंडन को वर्जित माना गया है |
- श्राद्ध में बाल तथा नाख़ून नहीं कटवाना चाहिए |
- श्राद्ध में नए कपड़े नही पहनने चाहिए |
- श्राद्ध में पशु -पक्षी को नहीं सताना चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) 16 दिन के क्यों होते हैं?
पितृ पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिनो तक रहता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु इन्हीं 16 दिनो के अंदर ही होती है। इसी कारण पितृ पक्ष सोलह दिन का होता है।
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में क्या भोजन बनाना चाहिए ?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में ब्राह्मण को गाय के दूध से बनी चीजे जैसे खीर, पकवान का भोजन कराना चाहिए | भोजन शुद्घ और ताजा ही परोसा जाना चाहिए | पितरो का पसंदीदा भोजन बनाना चाहिए | भोजन में काली दाल ( उड़द दाल ) का विशेष धयान रखना चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में भोजन में क्या नहीं बनाना चाहिए?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में ब्राह्मण को चना या चने से बनी सामग्री जैसे चने की दाल , चने का सत्तू , चने से बनी मिठाई का उपयोग नहीं करना चाहिए | पितृ पक्ष (श्राद्ध) में प्याज़ और लहसुन से बना भोजन भी नहीं बनाना चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में कौन सी सब्जी नहीं खानी चाहिए?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में जमीकंद अर्थात जमीन के अंदर होने वाली सब्जी जैसे आलु , अरबी, मूली को नहीं खानी चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में क्या मंदिर जाना चाहिए ?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके ही नियमित देवी - देवता, भगवान का स्मरण करना चाहिए और उसके बाद ही ब्राहण को पिंडदान करना चाहिए |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में क्या दान करना चाहिए ?
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में काले तिल के दान को विशेष महत्व दिया गया है | काले तिल के साथ चांदी की कोई वस्तु, अन्न, कपडे, गुड़, गाय का घी, जूते -चप्पल आदि का दान किया जा सकता है |
पिंडदान और तर्पण क्या होता है?
पिंडदान = पिंड का अर्थ है गोलाकर | पिण्डदान में गाय का घी , तिल , चावल से पिंड बनाया जाता है और श्रद्धा से पितरो को अर्पित किया जाता है |
तर्पण= पितरो को तृप्त करने की प्रकिय्रा को तर्पण कहा जाता है | तर्पण जल में जौ, कुशा (एक प्रकार की घास) काले तिल और सफ़ेद फूल मिलाकर किया जाता है |
पितृ पक्ष (श्राद्ध) की क्या कथा है?
श्राद्ध पक्ष में यह कथा सुनाई जाती है | ऐसा माना जाता है कि इस कथा को पढ़े बिना श्राद्ध का फल नहीं मिलता है |
महाभारत के दौरान जब दानवीर कर्ण की मृत्यु हो जाती है एवं जब उनकी आत्मा स्वर्ग पहुँचती है तब स्वर्ग में उन्हें बहुत सारा सोना चांदी दिया जाता है | लेकिन कर्ण की आत्मा भोजन की तलाश में होती है |
तब दानवीर कर्ण इंद्र देवता से पूछते है की भोजन में उन्हें खाना क्यों नहीं दिया गया ? इंद्र देवता, दानवीर कर्ण को बताते है की आपने, अपने जीवनकाल में बहुत दान पुण्य किये लेकिन आपने पितरो को कभी भोजन नहीं कराया | तब दानवीर कर्ण बताते है की उन्हें पूर्वजो का मालूम नहीं था |
दानवीर कर्ण की इस गलती को सुधारने का मौका दिया जाता है एवं वापस पृथ्वी लोक पर अपनी भूल सुधारने के लिए 16 दिन के लिये भेजा गया | जहा वो अपने पितरो का श्राद्ध, तर्पण कर सके | इसी कारण से इन 16 दिन की अवधि को ही पितृ पक्ष कहा गया |
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